Nature of teaching | शिक्षण की प्रकृति | ParnassiansCafe

शिक्षण की प्रकृति

 

शिक्षण की प्रकृति अनेकानेक परिभाषाओं का विश्लषण करने से शिक्षण को प्रकृति का स्पष्ट बोध होता है जिसका विवरण निम्न प्रकार है-

1. शिक्षण एक अन्तःप्रक्रिया -"शिक्षण एक अन्तःक्रिया की प्रक्रिया है, जिसमे मुख्यत: शिक्षक छात्र के मध्य कक्षा में हुई अन्तः क्रिया तथा क्रियाएँ सम्मिलित होती है।"

 2 . शिक्षण अन्तर वैयक्तिक प्रभाव - " शिक्षण अन्तर वैयक्तिक प्रभाव है जिसका उद्देश्य एक - दूसर की व्यव्हार क्षमताओं को विकसित करना है। "

3 . शिक्षण शिक्षक एवं छात्रों के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों की स्थापना है - " शिक्षण कार्य शिक्षक एवं छात्र के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों को स्थापित करता है। "

4 . सीखने की उत्सुकता जाग्रत करना ही शिक्षण है - " शिक्षण क्रियाओं की एक विधि है जो सीखने की उत्सुकता जाग्रत करती है। "

5 . शिक्षक छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया है - ' ' शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके प्रारूप तथा परिचालन की व्यवस्था इसलिए की जाती है जिससे छात्रों के व्यव्हार में परिवर्तन लाया जा सके। "

6 . शिक्षण प्रक्रिया का मुख्य लक्ष्य सीखना होता है - " शिक्षण प्रक्रिया में अधिगम का मार्गदर्शन एवं दिशा बोध कराया जाता है। यह सीखने को प्रभावित एवं प्रोत्साहित करती है। यह अधिगम को प्रभावशाली एवं कुशल बनाती है। शिक्षण का स्वरूप विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न -भिन्न हो सकता है परन्तु उन सभी का उद्देश्य छात्रों को सिखाना होता है।

7 . शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया यह स्पष्ट हो चुका है कि शिक्षण अधिगम को प्रोत्साहन, दिशा बोध एवं मार्गदर्शन की प्रक्रिया है। जहाँ शिक्षण होगा वहाँ अधिगम अवश्य होगा। अधिगम मात्र ही शिक्षण नहीं है। जहाँ अधिगम होगा वहाँ शिक्षण नहीं भी हो सकता अधिगम वैयक्तिक भी हो सकता है पर शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है क्योंकि उसके लिए कम से कम एक शिक्षक और एक सीखने वाला अवश्यक होता है


8 . शिक्षण एक उद्देश्यपूर्ण  प्रक्रिया है - बिना उद्देश्य के शिक्षण प्रक्रिया नहीं होती। इसका कोई कोई उद्देश्य होता है जो छात्रों के ज्ञान , अवबोध , अभिवृत्ति , कौशल एवं आदतों से सम्बन्धित होता है। जिसे प्राप्त करने के लिए ही उसका नियोजन परिचालन एवं मूल्यांकन होता है। ये सारे उद्देश्य छात्रों के व्यवहार परिवर्तन से सम्बन्धित होता है

9 . शिक्षण एक विकासात्मक प्रक्रिया है - शिक्षण प्रक्रिया द्वारा बालक का विकास किया जाता है। यद्यपि यह विकास बालकों की आत्म - क्रिया या अधिगम के द्वारा होता है पर अधिगम शिक्षक के मार्ग - दर्शन, प्रोत्साहन एवं दिशा बोध के द्वारा और कुशल एवं प्रभवशाली बनाया जाता है। इससे छात्रों का ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक विकास होता है

10 . शिक्षण का अर्थ बालक को अपने वातावरण के प्रति अनुकूल या समायोजन प्राप्त करने में सहायता देने से है:  यह समायोजन केवल ज्ञान प्राप्त करने से, बल्कि ज्ञान प्राप्त करने के ढंग पर भी निर्भर करता है। समायोजन की क्षमता मानसिक शक्तियों के विकास पर निर्भर करती है। मानसिक शक्तियों में कल्पना एवं चिंतन तथा तर्क शक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इन शक्तियों का विकास केवल ज्ञान से बल्कि ज्ञान प्राप्त करने के ढंग पर निर्भर करता है। ऐसा कार्य जिसकी चिन्तन और तर्क शक्ति पर्याप्त विकसित होगी। कठिन से कठिन समस्या को भी हल करने का प्रयास कर सकता है और सफल हो सकता है|

11 . शिक्षण का अर्थ सीखने के योग्य बनाना है - अर्थात् शिक्षण का ढंग ऐसा होना चाहिए कि उसमें अध्यापक बालक को ज्ञान एवं अनुभव स्वयं प्रदान कर ऐसी परिस्थिति तैयार करे या इस ढंग से उसका निर्देशन करें कि बालक स्वयं उसी परिस्थिति में प्रयास करते हए ज्ञान एवं अनुभव प्राप्त करे।

12 . शिक्षण का अर्थ मार्ग - दर्शन करना है - इस कथन से शिक्षण का स्वरूप पहले से बहुत अधिक भिन्न हो जाता है। इसके अनुसार शिक्षक का काम केवल निर्देशन है। छात्र स्वयं उसके निर्देशन पर प्रयास द्वारा अनुभव प्राप्त करते हैं प्रयास करने के लिए प्रेरणा की भी आवश्यकता होती है। इसलिए शिक्षक का काम केवल निर्देशन देना ही नहीं है, बल्कि बालक को प्रेरणा देना भी है। शिक्षण में निर्देशन देने से अधिक महत्त्व प्रेरणा देने से है

13 . शिक्षण का अर्थ प्रेरणा प्राप्त करना है- किसी कार्य को करने में तत्परता एवं लगन के प्रेरणा से ही सम्भव है। शिक्षक बालक की समस्या से निपटने एवं कार्य विशेष करने के लिए प्रेरणा देता है और बालक उस समस्या का समाधान स्वयं कर अनुभव हासिल करता है। लेकिन मात्र प्रेरणा देना ही शिक्षक का काम नहीं है, बल्कि प्रेरणा के साथ - साथ बालक का निर्देशन करना भी है। वह प्रेरणा और निर्देशन के द्वारा बालकों को सीखने एवं अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।


14 . शिक्षण का अर्थ क्रियाशील रहने का अवसर देना है - इस अवसर के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन दोनों आवश्यक हैं। रायबर्न के अनुसार , ' ' प्रत्येक बालक में क्रियाशील रहने को जन्मजात प्रवृत्ति विद्यमान रहती है जो विभिन्न मूल प्रवृत्तियों के रूप में व्यक्त होती रहती है। शिक्षण के कार्य का अधिकांश भाग यह है कि क्रियाशीलता की इस इच्छा की पूर्ति के लिए अवसर प्रदान किये जाएँ और बालकों को इस प्रकार प्रोत्साहित किया जाए कि वे इसकी सहायता से क्रियाशील होने की प्रवृत्ति को उपयोगी एवं फलदायक ढंगों से उपयोग कर सके।" क्रियाशील रहने के लिए अवसर यानी प्रेरणा एवं निर्देशन, अनुभव प्राप्त करने एवं मानसिक शक्तियों के उपयोग एवं विकास के लिए दिया जाता है और इस विकास तथा अनुभव से प्राणों में समायोजन की क्षमता आती है। यानी भविष्य के जीवन में बालक इस अनुभव और विकास का उपयोग करता है।

15 . शिक्षण आमने - सामने होने वाली प्रक्रिया है - शिक्षण क्रिया के समय छात्र एवं शिक्षक एक -दूसरे के आमने - सामने होते हैं तथा स्वोप्क्रम एवं अनुक्रियाएँ करते हैं

16 . शिक्षण में भाषा सम्प्रेरण का कार्य करती है  - शिक्षण में तथ्यों , प्रत्ययों , सिद्धान्तों तथा सामान्यीकरण का बोध भाषा के प्रयोग द्वारा शिक्षक कराता है

17 . शिक्षण एक तार्किक प्रक्रिया है - शिक्षण का नियोजन शिक्षण की तर्क- शक्ति पर ही आधारित होता है। पाठ्यवस्तु का विश्लेषण तथा संश्लेषण तर्क - शक्ति के द्वारा ही किया जाता है।

18 . शिक्षण एक उपचार विधि है - शिक्षण में छात्रों की कमजोरियों का निदान करके उनमें सुधार के लिए उपचार किया जाता है

19 . शिक्षण का मापन किया जाता है- शिक्षण का मापन शिक्षक के व्यवहार के रूप में किया जाता है

20 . शिक्षण प्रशिक्षण से लेकर अनुदेशन तक सतत् प्रक्रिया है - शिक्षण प्रक्रिया प्रशिक्षण से प्रारम्भ होती है और क्रमागत चढ़ाव के रूप में अनुदेशन तक चलती है


21 . शिक्षण एक त्रि - पक्षीय प्रक्रिया है - ब्लूम के अनुसार शिक्षण के तीन पक्ष होते हैं
 ( i ) शिक्षण उद्देश्य , ( ii ) सीखने के अनुभव , तथा ( 3 ) व्यवहार परिवर्तन 

22 . शिक्षण एक औपचारिक एवं अनौपचारिक प्रक्रिया है - शिक्षण प्रक्रिण विद्यालय में निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सम्पादित की जाती है और विद्यालय के बाहर भी सम्पादित की जाती है