शिक्षण , शिक्षण का अर्थ और परिभाषाए | Teaching , meaning of teaching and definitions of teaching | ParnassiansCafe

शिक्षण, शिक्षण का अर्थ

शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है। सामाजिक तथ्य शिक्षण को प्रभावित करते हैं। सामाजिक तथ्य एवं मानवीय घटक परिवर्तनशील होते हैं और शिक्षण सामाजिक परिवर्तन के लिए तथा सामाजिक नियंत्रण के लिए एक कारक मानी जाती है। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री एडम्स महोदय के अनुसार शिक्षण एक द्विध्रुवी प्रक्रिया है, इसकी एक धुरी शिक्षक है और दूसरा धुरी विद्यार्थी। शिक्षक अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से विद्यार्थी के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन तथा सुधार करता है और विद्यार्थी उसका अनुसरण करते हुए प्रभावित होता है। इस प्रकार शिक्षक एवं शिक्षार्थी के बीच शिक्षण की प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रक्रिया में शिक्षक के प्रयास को शिक्षण कहते हैं तथा शिक्षार्थी के कार्य को अधिगम या सीखना कहते हैं।



शिक्षा की भाँति शिक्षण के भी संकुचित तथा व्यापक अर्थ हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षण का तात्पर्य विद्यार्थी को कक्षा में कुछ ज्ञान या परामर्श देना है। लेकिन व्यापक अर्थ में शिक्षण के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति तथा वस्तु, विद्यार्थी को जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सिखाती ही रहती है। दूसरे शब्दों में व्यापक अर्थ के अनुसार शिक्षण एक सम्बन्ध है जिसकी सहायता से विद्यार्थी अपनी समस्त शक्तियों का उत्तरोत्तर विकास करता रहता है। अमेरिका के प्रसिद्ध प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्री जॉन ड्यूवी महोदय के अनुसार शिक्षण एक त्रिधुवी प्रक्रिया है।

शिक्षण की प्रक्रिया के तीन ध्रुव क्रमश : -

  1. शिक्षक
  2. शिक्षार्थी
  3. सामाजिक क्रियायें अथवा पाठ्यक्रम
जिसमें शिक्षक एवं शिक्षार्थी सजीव पहलू है तथा पाठ्यक्रम या विषयवस्तु निर्जीव पहलू है। व्यापक अर्थ में शिक्षण प्रक्रिया, शिक्षण के उक्त तीनों अंगों में परस्पर आदान-प्रदान या सम्बन्ध स्थापित करके शिक्षार्थियों में सीखने की उत्सुकता जागृत करती है। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि किसी विषयवस्तु को माध्यम बनाकर शिक्षक एवं शिक्षार्थियों के बीच विचारों के आदान-प्रदान या परस्पर अंत:क्रिया को ही हम शिक्षण कह सकते हैं।

शिक्षण का स्पष्टीकरण कुछ विद्वानों की परिभाषाओं के आधार पर भली - भाँति किया जा सकता है ।

शिक्षण की परिभाषाएँ :

एच० सी० मौरीसन (1934) ने एकतंत्र शासन में शिक्षण की परिभाषा देते हुए कहा है कि - "शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें अधिक विकसित व्यक्तित्व, कम विकसित व्यक्तित्व के सम्पर्क में आता है और हम विकसित व्यक्तितव की अग्रिम शिक्षा के लिए विकसित व्यक्तित्व की व्यवस्था करता है । "


एडमण्ड एमीडोन (1967) ने प्रजातंत्र शासन प्रणाली में शिक्षण की परिभाषा देते हुए कहा है कि - "शिक्षण को अन्त:क्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसके अन्तर्गत कक्षा-कथन को सम्मिलित किया जाता है, जो शिक्षक तथा छात्र के मध्य परिचालित होते हैं। कक्षा कथन का सम्बन्ध अपेक्षित क्रियाओं से होता है।"


जॉन बूबेकर ने हस्तक्षेप रहित शासन में शिक्षण को परिभाषित करते हुए कहा है कि - "शिक्षण में ऐसी परिस्थितियों की व्यवस्था की जाती है जिनमें कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए जाते है तथा कठिनाइयाँ उत्पन्न की जाती हैं। छात्र उन कठिनाइयों पर विजय पाने का प्रयास करता है तथा रिक्त स्थानों की पूर्ति करने का प्रयास करता है। छात्र को इस प्रकार की क्रियाएँ सीखने में सहायक होती है।"

शिक्षण की कुछ अन्य परिभाषाएँ :

  • एन० एल० गेज (1962) के अनुसार - "शिक्षण प्रक्रियाओं में पारस्परिक प्रभावों को सम्मिलित किया जाता है जिसमें दूसरों की व्यावहारिक क्षमताओं के विकास का लक्ष्य होता है । "

  • बर्टन ( Burton ) के अनुसार - " शिक्षण - अधिगम हेतु उद्दीपन , मार्गदर्शन तथा दिशाबोध है । ' '

  • क्लार्क ( Clark ) के अनुसार - " अधिगम एक स्थायी व्यवहार परिवर्तन है . . और शिक्षण वह प्रक्रिया है जो छात्रों के व्यवहार में स्थायी परिवर्तन लाती है । इस प्रकार शिक्षण की उपलब्धि का मानदण्ड अधिगम ही है|"

  • बी० एस० ब्लूम (1966 ) के अनुसार - “ शिक्षण की क्रियाओं , विधियों , व्याख्यान , गृहकार्य , वाद विवाद आदि का उद्देश्य होता है कि छात्रों के ज्ञानात्मक , भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों के स्तरों का विकास करना । यह विकास अधिगम का ही प्रारूप होता है ।"

  • जेम्स एण्वं याइन के अनुसार - " समरत शिक्षण का अर्थ है सीखने में वृद्धि करना"

  • स्किनर के अनुसार - " शिक्षण पुनर्बलन की contingencies का क्रम है । "

  • रायबर्न के अनुसार - " शिक्षण एक सम्बन्ध है जो विद्यार्थियों को उसकी शक्तियों के विकास में सहायता देता है।"

  • योकुम तथा सिक्सन के अनुसार - " शिक्षण का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा समूह के लोग अपने अपरिपक्व सदस्यों के जीवन में सामंजस्य स्थापित करना बताते हैं । "

  • बी० ओ० स्मिथ के अनुसार - " शिक्षण क्रियाओं की एक विधि है जो सीखने की उत्सुकता जाग्रत करती है

  • एम० आर० टैबू के अनुसार - " शिक्षण का अभिप्राय है लोगों को कुछ सीखने में मदद करना । परन्तु प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपने प्रयासों तथा अनुभवों से ही सीखता है । अध्यापक , विद्यार्थी में सीखने की रुचि उत्पन्न करने की प्रेरणा दे सकता है , ऐसे अनुभव प्राप्त करने के लिए उसका निर्देशन कर सकता है जिसमें वह कोई तथ्य , अभिवृत्ति या कौशल सीख सके किन्तु अध्यापक उसकी तरफ से स्वयं नहीं सीख सकता । प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं सीखना पड़ता है।"
 
इस प्रकार शिक्षण वह प्रक्रिया है जो अधिगम को प्रभावित करती है। शिक्षण की यह परिभाषा अधिक व्यावहारिक प्रतीत होती है, क्योंकि शिक्षण की क्रियाओं का मुख्य लक्ष्य छात्रों को सिखाना होता है। अधिगम, शिक्षण के बिना भी होता रहता है जबकि शिक्षण, अधिगम के बिना संभव नहीं होता है।