तुकांत शब्द एवं तुकांत कविता किसे कहते हैं?
तुकांत शब्द किसे कहते हैं?
विडियो में जानें :
तुकांत शब्दों की सहायता से कविता अथवा ग़ज़ल को आकर्षक रूप दिया जाता है किंतु यह आवश्यक नहीं कि तुकांत शब्दों के बिना कोई रचना न की जा सके।
उदाहरण के लिए: रोई-सोई, लाल-बल, कल-पल, जैसा-वैसा, करो-मरो, मिलना-जुलना, किरण-हिरण इत्यादि
तुकांत शब्दों की सहायता से कविता अथवा ग़ज़ल को आकर्षक रूप दिया जाता है किंतु यह आवश्यक नहीं कि तुकांत शब्दों के बिना कोई रचना न की जा सके।
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तुकांत कविता किसे कहते हैं?
ऐसी कविताएं जिनको लिखने के लिए कविता की प्रत्येक पंक्ति में अंतिम शब्द समान ध्वनि उत्पन्न करते हैं ऐसी कविता को तुकांत कविता तथा समान ध्वनि पैदा करने वाले अंतिम शब्दों को तुकांत शब्द कहते हैं।उदाहरण के लिए: रोई-सोई, लाल-बल, कल-पल, जैसा-वैसा, करो-मरो, मिलना-जुलना, किरण-हिरण इत्यादि
तुकांत शब्द के पद :
तुकांत शब्द 2 पदों से मिलकर बने होते हैं|- सामंत
- पदांत
सामंत :
सामंत पद में ऐसे शब्द आते हैं जिनकी ध्वनि का अंत एक जैसा हो अर्थात शब्दों को बोलने की ध्वनि एक जैसी हो।
जैसे- आइये-जाइये ( इन दोनों शब्दों में एक जैसी ध्वनि ;आइए-आइए है)
जैसे- आइये-जाइये ( इन दोनों शब्दों में एक जैसी ध्वनि ;आइए-आइए है)
पदांत :
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि ऐसे शब्द जिनका अंतिम पद एक जैसा हो।
जैसे- नीचे-खिंचे, दिल-विल ( इसमें शब्द का अंतिम अक्षर समान है अर्थात पद का अंत समान है।)
उदाहरण के लिए एक ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां निम्नलिखित हैं जिनसे आप अतुकांत शब्दों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
[नोट: यह सर्वप्रथम उर्दू भाषा में सन उन्नीस सौ पांच में मोहम्मद इकबाल जी ने लिखी थी जोकि देशभक्ति से परिपूर्ण है ]
जैसे- नीचे-खिंचे, दिल-विल ( इसमें शब्द का अंतिम अक्षर समान है अर्थात पद का अंत समान है।)
अतुकांत शब्द किसे कहते हैं?
ऐसे शब्द जिनकी ध्वनि आपस में मिलती नहीं है और ना ही वह किसी प्रकार समान होते हैं अतुकांत शब्द कहलाते हैं। जैसा कि आप सभी को तुकांत शब्दों में बताया गया था किसी कविता गजल गीत को लिखने में यह आवश्यक नहीं है कि हम तुकांत शब्दों का ही प्रयोग करें इसके लिए अतुकांत शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है उनसे भी रचनाएं की जा सकती है।उदाहरण के लिए एक ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां निम्नलिखित हैं जिनसे आप अतुकांत शब्दों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
[नोट: यह सर्वप्रथम उर्दू भाषा में सन उन्नीस सौ पांच में मोहम्मद इकबाल जी ने लिखी थी जोकि देशभक्ति से परिपूर्ण है ]
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी यह गुलसिता हमारा
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिंदी हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा
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