अवॉर्ड पाने योग्य किताब 'द नियोजित शिक्षक' Book Review by Munna Singh

द नियोजित शिक्षक Book Review by Munna Singh

अन्य क्षेत्रों की तुलना में साहित्य में कम्पटीशन ज्यादा ही 'टफ़' है, क्योंकि मैं देखता हूँ कि जब भी साहित्यिक प्रतियोगिता होती हैं, तो उनमें डिसीजन लेने के लिए जो जज होते हैं, वे सब अन्य प्रतियोगितात्मक इंटरव्यू के जजों से भिन्न मनोदशावाले होते हैं यानी उनके मानक भी अलग-अलग रहते हैं। जैसा और जो भी हो, ऐसी बातें मेरे दिमाग से होकर गुजर रही हैं, क्योंकि जब मैं हिंदी उपन्यास 'द नियोजित शिक्षक' पढ़ रहा था, तो मेरे दिमाग में यह प्रश्न उफ़ान लिए था कि इतनी सुन्दरतम व्याख्यापरक पुस्तक को कोई भी साहित्यिक अवॉर्ड क्यों नहीं प्राप्त हुए हैं |


पुस्तक समीक्षा:

वैसे इन दिनों मैंने कई किताबें पढ़ा, जिनमें कुछ सार्थक लगा तो कुछ ने दिन-रात की नींद उड़ा दी और सोचने पर मजबूर कर दिया। वर्त्तमान समय में इस उपन्यास के नायक जैसे लोगों के बारे में सरकार क्यों नहीं ध्यान दे रहे हैं ?

हिंदी उपन्यास 'द नियोजित शिक्षक' पढ़कर ऐसा अनुभव हुआ कि देशभर के कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार भेदभाव करते हैं, तो शिक्षकों के हालात पर अधिकारीगण ध्यान नहीं देते हैं ?

'द नियोजित शिक्षक' ऐसा उपन्यास है, जो भारत के उन शिक्षकों पर लिखा गया है, जो पारा या कॉन्ट्रैक्ट शिक्षक कहलाते हैं। वाकई किताब की हरेक बातें दिलस्पर्शी है और मन से यह बातें निकल जाती है- वाह ! शानदार ! फैंटास्टिक !

जैसा भी हो, प्रस्तुत उपन्यास की कहानी शिक्षकों की ज़िन्दगानी है और यह सीख देती है कि शिक्षक भी इंसान होते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक समीक्षा मुन्ना सिंह, जो कि मुखर्जी नगर दिल्ली के निवासी हैं, के द्वारा की गई है | मुन्ना सिंह कक्षा 12 वीं के विद्यार्थी हैं|