राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीय एकता (राष्ट्रीयता) | Nationalism or national unity | ParnassiansCafe

राष्ट्रवाद को समझने से पहले हमें राष्ट्र को समझना आवश्यक है कि राष्ट्र क्या है? और सही मायने में राष्ट्र किसे कहा जा सकता है?

Image - source : https://hi.m.wikipedia.org/wiki/१८५७_का_प्रथम_भारतीय_स्वतंत्रता_संग्राम


राष्ट्र एक ऐसा सामाजिक संगठन होता है जो विभिन्न विरासत जैसे धर्म, संस्कृति, भाषा, विचार, इतिहास इत्यादि से सम्मिलित होकर बनता है। और यदि हम राष्ट्रवाद को परिभाषित करें तो सीधे शब्दों में कहा जा सकता है कि किसी भौगोलिक सीमा के अंदर रहने वाले लोगों के बीच राजनैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषा संबंधी एवं अन्य किसी भी आधार पर उत्पन्न एकता की भावना को राष्ट्रवाद कहते हैं।

कोठारी शिक्षा आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय एकता "अपने में राष्ट्रीय भविष्य में विश्वास उन्नत जीवन मूल्यों एवं कर्तव्यों की भावना स्वच्छ प्रशासन का विश्वास और पारस्परिक सद्भाव संबंधित किए हुए हैं।"

राष्ट्रीय एकता सम्मेलन की रिपोर्ट के अनुसार "राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों के हृदय में एकता संगठन सनिकटता की भावना सामान्य नागरिक की भावना और राष्ट्र के प्रति शक्ति की भावना का विकास किया जाता है।"

डॉक्टर हुमायूं कबीर के अनुसार राष्ट्रीय एकता वह है जो "राष्ट्र के प्रति अपनत्व की भावना पर आधारित होती है।"

उपरोक्त सभी परिभाषा के आधार पर कहा जा सकता है राष्ट्रवाद अर्थात राष्ट्रीय एकता एक ऐसी भावना है जो उस राष्ट्र के लोगों को एक सूत्र में बांधे रखती है।

राष्ट्रवाद का उदय 

भारत की स्वतंत्रता एवं ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विद्रोह में सन 1857 में प्रथम भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ जो कि 10 मई 1857 की संध्या को मेरठ से प्रारंभ हुआ था। इसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एवं भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। भारत को स्वाधीन देखने के लिए भारत के लोग एकजुट होकर अंग्रेजी शासन से लड़ने के लिए तैयार हुए और इस प्रकार राष्ट्रवाद का उदय प्रारंभ हुआ।

यदि राष्ट्रवाद के उदय के कारणों को खंडों में विभाजित किया जाए तो राष्ट्रवाद के उदय के निम्नलिखित कारण हैं।

राजनीतिक करण

अंग्रेजी शासन द्वारा किए जा रहे शोषण एवं अत्याचारों से परेशान होकर भारत के लोगों ने सन 1857 में एकजुट होकर एक विरोध शुरू किया जो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति कहलाती है

अंग्रेजी शासन से लड़ने के लिए भारत के लोगों ने 1885 में कॉन्ग्रेस की स्थापना की जोकि भारत के लोगों को स्वाधीनता के लिए एक पायदान पर ला सकें और अंग्रेजी शासन के खिलाफ नई रणनीतियां तैयार कर सके इसकी शुरुआत मुंबई से हुई और भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में इस संगठन को फैलाया गया ताकि लोगों के अंदर स्वाधीनता को लेकर एकता की भावना उत्पन्न हो और भारत के लोग स्वतंत्रता के लिए एकजुट होकर अंग्रेजी शासन का सामना कर सकें।

  1. आर्थिक करण
  2. सामाजिक करण
  3. सांस्कृतिक करण
  4. बाह्य करण

राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता और महत्व

भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जो अनेकता में एकता पर पूर्ण विश्वास रखता है इसमें न जाने कितनी जातियां धर्म एवं भिन्न-भिन्न भाषा भाषी लोग एक साथ रहते हैं भारत की अनेकता में एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए हम सभी को एक पायदान पर आना पड़ेगा और एकजुट होकर रहना होगा। भले ही हमारे धर्म जाति संस्कृति भाषा बोलियां भिन्न-भिन्न हों किंतु हमें देश की अखंडता बनाए रहने के लिए मिल जुल कर रहना होगा यही एक सशक्त राष्ट्र के अच्छे नागरिक की पहचान होती है कि वह अपने राष्ट्र को खुद से ज्यादा महत्व देता है और उसके प्रति कर्तव्यनिष्ठ होता है।

राष्ट्रीय एकता की महत्वता एवं आवश्यकता को समझने के लिए डॉक्टर राधाकृष्णन ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि "यदि हमें राष्ट्र के रूप में जीवित रहने की जरा सी भी अभिलाषा है तो हमें राष्ट्रीय एकता की अनिवार्य आवश्यकता स्वीकार करनी होगी।"

राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता और महत्व को हम निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट कर सकते हैं जो कि इस प्रकार हैं

1. भारत को लोकतांत्रिक देश बनाए रखने के लिए।

  • भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है बिना राष्ट्रीय एकता के लोकतंत्र का निर्माण संभव नहीं है।

2. भारत की अखंडता एवं एकता को बनाए रखने के लिए। 

  • भारत ऐतिहासिक काल से अखंडता और एकता पर चला आया है किंतु आज के समय में कुछ अराजक का तत्व भारत की अखंडता एवं एकता को ध्वस्त करने पर आमादा है इसलिए राष्ट्रीय एकता आवश्यक है और अनिवार्य भी।

3. भारत में अमन एवं शांति बनाए रखने के लिए। 

  • देश में अमन एवं शांति स्थापित करने के लिए सबसे आवश्यक है । देशवासियों की एकता एवं देश के प्रति प्रेम की भावना जो एक देश को सशक्त राष्ट्र बनाती हैं साथ ही साथ देश में अमन एवं शांति लाती है जब हमारे देश में शांति होगी तो हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शांति स्थापित करने के लिए प्रयास कर सकते हैं अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति एवं अमन का संदेश फैला सकते हैं।

4. देश की आंतरिक सुरक्षा हेतु।

  • देश को जितना संकट विदेशी ताकतों से है उतना ही संकट आंतरिक समस्याओं से है जोकि देश की अखंडता को चोटिल कर रहे हैं जैसे धर्म जाति बोली एवं भूमि इत्यादि। यदि हमें इन समस्याओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता होगी।

5. देश की बाह्य ताकतों से सुरक्षा के लिए।

  • दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश होने के कारण भारत 6 देशों की सीमाएं मिलती हैं जिसमें पाकिस्तान चीन नेपाल भूटान म्यांमार और बांग्लादेश सम्मिलित है। इसमें से कुछ देश ऐसे भी हैं जो भारत की प्रगति से बड़े गंभीर एवं नाखुश नजर आते हैं और बार-बार सीजफायर का उल्लंघन करते हैं। और यदि ऐसे माहौल में हम राष्ट्रीय एकता पर ध्यान ना दें तो इसका लाभ ऐसे देश उठाएंगे जो भारत की प्रगति से खुश नहीं है। इसलिए हमें देश की भाइयों ताकतों से सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय एकता पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।

भारत में बढ़ती राष्ट्रीय एकता की समस्या

भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है जोकि भिन्नताओं से परिपूर्ण है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जो अनेकता में एकता पर विश्वास रखता है और इस को कायम रखने के लिए प्रयासरत रहता है जब बात भारतीय एकता की आती है तो सबसे पहले भारतीय संस्कृति की बात की जाती है जो भारत में व्याप्त विभिन्न संस्कृतियों को अपने अंदर सम्मिलित कर लेती है किंतु आज के समय में देखा जा रहा है कि देश के अलग-अलग राज्यों के लोग एक दूसरे की भाषाओं एवं रीति-रिवाजों से थोड़ा परहेज करने लगे हैं। कुछ लोग भारत की अखंडता को इस प्रकार खंड खंड कर रहे हैं जो कि बाद में एक जटिल समस्या का रूप धारण कर सामने आएगी। इन समस्याओं को सुलझाने के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली को सशक्त करना होगा। शिक्षा प्रणाली में इस प्रकार की समस्याओं को सुलझाने हेतु माध्यमिक शिक्षा आयोग ने कहा है कि "हमारी शिक्षा को ऐसी आदत हूं तथा दृष्टिकोण एवं गुणों का विकास करना चाहिए जो नागरिकों को इस योग्य बनाएं ताकि वह जनन तंत्र या नागरिकता के दायित्व को अच्छी तरह बहन कर सकें उन विघटनकारी प्रवृत्तियों का विरोध कर सकें जो देश अखंडता एकता एवं धर्मनिरपेक्षता के विकास में बाधाएं डालती है" उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय एकता में आने वाली समस्या को शिक्षा प्रणाली में सुधार ,एवं सुदृढ़ और सशक्त कर सुधारा जा सकता है।

भारत की राष्ट्रीय एकता में उत्पन्न होने वाली बाधाएं

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जिस पर प्रत्येक देश का ध्यान आकर्षित होता है इसलिए भारत के लिए राष्ट्रीय एकता का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि वर्तमान समय में भारत को विदेशी ताकतों से तो खतरा है ही किंतु देश के अंदर जातिवाद क्षेत्रवाद भाषावाद संप्रदायिकता आतंकवाद दलगत राजनीति असमानता एवं प्रांतीयवाद जैसी अनेक समस्याओं से जूझ रहा है।

1. जातिवाद

भारत एक ऐसा देश है जिसमें विभिन्न धर्म और उन धर्मों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की जातियां पाई जाती है। भारत में सबसे बड़ा धर्म है सनातन धर्म अथवा हिंदू धर्म है और इसमें चार वर्ण होते हैं ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय और शूद्र। प्राचीन भारत में वर्णों का निर्माण उनके जन्म के आधार पर नहीं बल्कि उनके कार्य के आधार पर किया गया था । कोई भी व्यक्ति एक जाति से दूसरी जाति एवं प्रवेश करने के लिए बाध्य नहीं था वह अपने कर्म के अनुसार स्वयं उस जाति से संबंधित हो जाता था किंतु आज के समय में जातियों केवल राजनीतिक लाभ तक सीमित रह गई है राजनीतिक लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए जातियों को हत्यार बनाते हैं और किसी विशेष जाति समुदाय के लोगों को चयन करके उनको एकजुट करते हैं और अपना वोट बैंक बढ़ाते हैं। इसके कारण कहीं बाहर जातियों में लड़ाइयां भी हो जाती हैं और राष्ट्रीय एकता को हानि पहुंचती है।

2. प्रांतीयवाद

विश्व में प्रत्येक देश अच्छे एवं सुदृढ़ शासन हेतु देश को अनेक प्रांतों में विभाजित कर देता है। किंतु विभाजन का परिणाम यह होता है कि एक प्रांत दूसरे प्रांत से मधुर संबंध नहीं स्थापित कर पाता है जिसके कारण उन प्रांतों में हमेशा तनातनी बनी रहती है उदाहरण के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक यह दोनों प्रांत बेलगाम क्षेत्र के लिए सदैव लड़ते रहते हैं। इसी प्रकार पंजाब और हरियाणा असम और नागालैंड जैसे प्रांत आपसी मन भेदों को लेकर एक दूसरे से मधुर संबंध स्थापित करने में नाकामयाब है जोकि राष्ट्रीय एकता को आघात पहुंचाते हैं।

3. क्षेत्रवाद

जिस प्रकार देश सुदृढ़ शासन के लिए देश को कई प्रांतों में व्यक्त करता है उसी प्रकार एक प्रांत के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्र होते हैं जोकि प्रांत की बेहतरीन सुख सुविधाओं एवं अमन शांति के लिए निर्मित किए जाते हैं किंतु कई क्षेत्रों में राजनीतिक पार्टियां क्षेत्रीय वाद का नारा लगाकर लोगों को विघटित करते हैं जो राष्ट्रीय एकता को खंडित कर देता है।

4. संप्रदायिकता [content not available at the moment]

[नोट : आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा यदि आपको इस लेख  से किसी भी प्रकार की आपत्ति है तो आप हमारे कांटेक्ट पेज पर जाकर  हमें सूचित कर सकते है हम आपकी समस्याओ का समाधान शीघ्र ही करेंगे]