शिक्षण सहायक/शिक्षण अधिगम सामग्री क्या है | What is Teaching learning material |TLM |ParnassiansCafe

शिक्षण सहायक/शिक्षण अधिगम सामग्री 

जब एक शिक्षक अपने छात्रों को पढ़ाता या कुछ सिखाता है तो वह छात्रों से अपेक्षा रखता है कि छात्र उस विषय वस्तु को अच्छे से सीखे और याद रखें इसके लिए वह अपने शिक्षण में बहुत सी शिक्षण सहायक सामग्रियों और स्वनिर्मित उपकरणों / सामग्रियों का प्रयोग करता है इन्हीं सामग्रियों को 'टीचिंग लर्निंग मैटेरियल' अथवा शिक्षण सहायक सामग्री कहते हैं।



अन्य शब्दों में कहा जाए तो ऐसी शिक्षण सामग्रियों का समुच्चय जो सजीव अथवा निर्जीव या कृत्रिम अथवा प्राकृतिक संसाधनों से निर्मित हो तथा जिससे एक शिक्षक अपने  शिक्षण-अधिगम प्रकिया के वांछित उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है शिक्षण अधिगम सामग्री (टी०एल०एम०) कहलाती हैं।

इन सामग्रियों के माध्यम से छात्रों को किसी नियम अथवा सूत्र को समझाने में आसानी होती है। ये सामग्री केवल छात्रों के लिए ही उपयोगी नहीं है वरन अध्यापकों के लिए भी उतनी ही आवश्यक होती है जितनी छात्रों के लिए। इसीलिए इन सामग्रियों को शिक्षण अधिगम सामग्री कहा जाता है इन सामग्रियों से एक अध्यापक स्वयं तो सीखता ही है तथा शिक्षण प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली भी बनाता है। इसलिए शिक्षण अधिगम सामग्री की महत्वता और अधिक बढ़ जाती है

एक चीनी कहावत के अनुसार कहा जाता है कि - "जो चीजें मैं सुनता हूं शायद उनको भूल सकता हूं, जो चीजें में देखता हूं शायद उनको याद रख सकता हूं, किंतु जो चीजें मैं स्वयं करता हूं उनको कभी नहीं भूल सकता हूं।"

अतः इस बात से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जब विद्यार्थी किसी कार्य को स्वयं करता है तो वह उस कार्य को भलीभांति रूप से सीख जाता है तथा एक लंबी अवधि तक उसको अपने जहन(मस्तिष्क) में रख सकता है।

Table of Content :


  1. शिक्षण सहायक/शिक्षण अधिगम सामग्री की परिभाषायें
  2. शिक्षण अधिगम सामग्री चयन के सिद्धांत
  3. आदर्श अधिगम शिक्षण सामग्री के गुण
  4. शिक्षण अधिगम सामग्री की आवश्यकता एवं महत्व
  5. शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग करते समय ध्यान में रखने योग्य बातें अर्थात सावधानियां
  6. शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रकार

परिभाषायें (Definitions)

क्रो व क्रो के अनुसार, "शिक्षण अधिगम सामग्री सीखने वालों व्यक्तियों को, घटनाओं, वस्तुओं और कारणों तथा प्रभाव सम्बन्धों के नियोजित अनुभवों से लाभ उठाने का अवसर देते हैं ।"

बर्टन के अनुसार, "शिक्षण अधिगम सामग्री वह संवेदीय पदार्थ या काल्पनिक वस्तुएं हैं, जो अधिगम को प्रारम्भ एवं प्रेरित करती हैं तथा उसे पुनर्बलन प्रदान करती है।"

जूट के अनुसार-, "शिक्षण अधिगम सामग्री वह युक्ति है, जो अध्यापक की अध्ययन सामग्री को आसान तथा प्रभावशाली ढंग से बनाती है।"

डेन्ट (Daint, E.C.) के अनुसार- "ऐसी समस्त सामग्री जो कक्षा में या किसी भी शिक्षण परिस्थिति में लिखित अथवा मौखिक शब्दों को समझने में सहायक सिद्ध होती है, शिक्षण अधिगम सामग्री कहलाती है।"

एस० के० कोचर (Kochchar) के अनुसार- "शिक्षण अधिगम सामग्री से सहायक उपाय हैं जिनके प्रयोग को बढ़ाकर एक शिक्षक छात्रों को भाव स्पष्ट कर सकता है तथा विभिन्न प्रत्ययों को समझाने, अर्थापन करने, गुण-दोषों का विमोचन करने, ज्ञान वृद्धि, रुचियों, चिन्तन शक्ति आदि को बढ़ाने में सहायता प्रदान कर सकता है।"

इस प्रकार शिक्षण को अधिक रुचिकर तथा प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षण अधिगम सामग्री या शिक्षण-सहायक सामग्री अत्यन्त आवश्यक है। इसके प्रयोग से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में बालकों का ध्यान आकर्षित करने में विशेष सहायता मिलती है।

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शिक्षण अधिगम सामग्री के सिद्धांत

  1. उद्देश्य नियोजन का सिद्धांत। 
  2. भौतिक नियंत्रण का सिद्धांत।
  3. सामग्री चयन का सिद्धांत। 
  4. साधन रचना का सिद्धांत।
  5. प्रस्तुतीकरण एवं प्रदर्शन का सिद्धांत। 
  6. संगठन अथवा व्यवस्था का सिद्धांत। 
  7. अनुदेशन अनुक्रिया का सिद्धांत। 

1. उद्देश्य नियोजन का सिद्धांत- सिद्धांत के अनुसार शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग करने से पूर्व शिक्षक को शिक्षण के उद्देश्यों का नियोजन करना होता है। शिक्षण सामग्रियों का प्रयोग करने से पूर्व छात्रों को इस बात से अवगत कराना चाहिए कि इसके उद्देश्य क्या है? और विद्यार्थी इस सामग्री की सहायता से क्या-क्या सीख पाएंगे।


2. भौतिक नियंत्रण का सिद्धांत- उद्देश्यों को निर्धारित करने के बाद एक शिक्षक का दायित्व यह भी होता है कि शिक्षक शिक्षण सामग्रियों उचित व्यवस्था के साथ-साथ उनके रखरखाव पर भी ध्यान दें छात्रों को प्रदर्शित करने से पूर्व शिक्षक को पर्याप्त सामग्री अपने पास रखनी चाहिए और उचित व्यवस्था के साथ प्रदर्शन के दौरान उत्पन्न होने वाली सभी बाधाओं को दूर करना चाहिए। जैसे- शिक्षक को कक्षा में  उचित बैठक व्यवस्था, उपयुक्त प्रकाश, विद्युत व्यवस्था आदि की उचित व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए।


3. सामग्री चयन का सिद्धांत- यह सिद्धांत इस बात की ओर इंगित करता है कि शिक्षक, शिक्षण अधिगम सामग्री का चयन करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वह किस वर्ग के लिए अथवा किस आयु स्तर के छात्रों के लिए एक प्रभावी युक्ति का कार्य करेगी जिससे कि अधिकाधिक विद्यार्थी लाभान्वित हो। 


4. साधन रचना का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार एक शिक्षक को शिक्षण के दौरान ऐसी शिक्षण अधिगम सामग्रियों का उपयोग करना चाहिए जो आसानी से प्राप्त हो सके, जो छात्रों की पहुंच तक हो। शिक्षण सामग्री का निर्माण करते समय छात्रों की सहायता लेनी चाहिए विद्यार्थी जो स्वयं करके सीखता है तो वहां एक लंबी अवधि तक उसको याद रख सकता है। शिक्षक को शिक्षण अधिगम सामग्री रचना करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि सामग्री वास्तविक रोचक और क्रियाशील हो।


5. प्रस्तुतीकरण एवं प्रदर्शन का सिद्धांत- सिद्धांत के नाम से ही स्पष्ट है प्रस्तुतीकरण एवं प्रदर्शन अर्थात दिखाने के साथ-साथ बोलने की शैली। शिक्षक को शिक्षण सहायक सामग्री प्रयोग करते समय अपनी भाषा को सरल रखना चाहिए ताकि वह जल्दी से बच्चों की समझ में आ जाए और प्रदर्शन कार्य ऐसा होना चाहिए कि अधिक से अधिक विद्यार्थी इससे लाभान्वित हो जाएं।


6. युक्ति संगठन अथवा व्यवस्था का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार एक शिक्षक अपने अनुभवों से ऐसी शिक्षण विधियों अथवा युक्तियों का चयन करता है जो विद्यार्थियों के लिए अधिक लाभकारी हो। तथा अधिक लाभकारी सामग्रियों का उपयोग करता है। तथा एक ऐसा वातावरण उत्पन्न करता है कि जो छात्र हेतु अधिक प्रभावपूर्ण और उपयुक्त हो।


7. अनुदेशन-अनुक्रिया का सिद्धांत- इस सिद्धांत इस बात की ओर इशारा करता है कि शिक्षक को शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग करते समय विद्यार्थियों को उचित निर्देश देने चाहिए जो उनके मार्गदर्शन और अभिप्रेरणा हेतु उपयुक्त हो। शिक्षक को विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान और नवीन ज्ञान के मध्य एक सामंजस्य स्थापित करना चाहिए जिससे कि विद्यार्थी अनुक्रिया के साथ-साथ शिक्षक के साथ उचित अंतः क्रिया करने में समर्थ हो।

शिक्षण अधिगम सामग्री का 'चयन का  सिद्धांत'

शिक्षण अधिगम सामग्री के चयन के लिए शिक्षक को सामग्री तथा उनके उपयोग विशेष ध्यान देना होता है  जो कि इस प्रकार हैं-

वर्ग का चयन - शिक्षक जब शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग करता है तो उससे पूर्व वह इस बात को ध्यान में रखता है कि शिक्षण सामग्री इस वर्ग के लिए उपयुक्त है या नहीं। अर्थात किस वर्ग के विद्यार्थी के लिए कौन सी शिक्षण अधिगम सामग्री उपयुक्त रहेगी इसके लिए वह कक्षा या वर्ग का चयन करता है।

विषय वस्तु - इसमें शिक्षक शिक्षण अधिगम सामग्री का चयन करते समय इस बात पर विशेष बल देता है कि जो प्रकरण शिक्षक पढ़ा रहा है उस प्रकरण को किस शिक्षण सामग्री के उपयोग से सरल और सहज बनाया जा सकता है ताकि अधिक से अधिक विद्यार्थी इससे लाभान्वित हो सके।

रुचि - रुचि को सीखने का आधार कहा जाता है। विद्यार्थियों की रुचि के आधार पर शिक्षक चयन करता है कि अमुक शिक्षण सामग्री उपयुक्त रहेगी।

प्रेरणा/अभिप्रेरणा - इसमें  शिक्षक को ऐसी शिक्षण अधिगम सामग्री चयन करना चाहिए जो विद्यार्थियों को अभिप्रेरित करे, उनकी जिज्ञासा को तीव्र करे, छात्रों की रुचि और सीखने इच्छा को चरम ले जाने का कार्य करे।

लक्ष्य प्राप्ति- इसके अनुसार शिक्षक को ऐसी शिक्षण अधिगम सामग्री का चयन करना चाहिए जिससे कि शिक्षण अधिगम के मूल उद्देश्यों अथवा लक्ष्य को  सहजतापूर्वक प्राप्त किया जा सके।

अभावता- इसके अंतर्गत शिक्षक के पास यदि शिक्षण सामग्रियों का अभाव है तो शिक्षक को ऐसी स्थिति में प्रभावशाली स्वनिर्मित शिक्षण सामग्रियों का चयन करना चाहिए और विद्यार्थियों पढ़ना चाहिए।

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आदर्श अधिगम शिक्षण सामग्री के गुण

एक आदर्श अधिगम शिक्षण सामग्री में निम्न गुणों का होना आवश्यक होता है
  1. टी०एल०एम० को ज्ञानवर्धक के साथ-साथ उत्साहवर्धक भी होना चाहिए।
  2. टी०एल०एम० को ऐसा होना चाहिए जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके।
  3. टी०एल०एम० को सस्ता एवं टिकाऊ होना चाहिए।
  4. टी०एल०एम० का निर्माण स्वयं करना चाहिए।
  5. टी०एल०एम० को वास्तविक और क्रियात्मक होना चाहिए।
  6. टी०एल०एम० छात्रों को प्रेरित करती है।
  7. आदर्श टी०एल०एम० समय को बचाकर प्रभावशाली शिक्षण प्रदान करती है।
  8. टी०एल०एम० आकर्षक और स्पष्ट होना चाहिए।
  9. टी०एल०एम० को पूर्ण वह स्पष्ट सूचना प्रदान करने वाला होना चाहिए।
  10. टी०एल०एम० का आकार ना तो बहुत अधिक बड़ा और ना ही अत्यधिक छोटा होना चाहिए।

शिक्षण अधिगम सामग्री की आवश्यकता एवं महत्व

  1. शिक्षण प्रक्रिया को रोचक एवं मनोरंजक बनाने में।
  2. विद्यार्थियों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करने में।
  3. विषय प्रकरण को सरल सुगम सहज बनाने में।
  4. विद्यार्थियों की एकाग्रता बढ़ाने में।
  5. ज्ञान को स्थायित्व व स्पष्टता प्रदान करने में।
  6. छात्रों को अभिप्रेरणा प्रदान करने में।
  7. प्रकरण की संपूर्ण जानकारी प्रदान करने में।
  8. छात्रों को करके सीखने के सिद्धांत की ओर अग्रसर करने में।
  9. कम समय में अधिक जानकारी प्रदान करने में।

शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग करते समय ध्यान में रखने योग्य बातें अर्थात सावधानियां

  1. शिक्षण अधिगम सामग्री (टी०एल०एम०) में अत्यधिक समय व्यय नहीं करना चाहिए।
  2. टी०एल०एम० को समझाते समय, सरल, सहज और स्पष्ट भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  3. टी०एल०एम० अत्याधिक बड़ा और अत्यधिक छोटा भी नहीं होना चाहिए।
  4. टी०एल०एम० ज्ञानवर्धक तथ्यों के साथ-साथ मनोरंजक तरीके से समझाया जाना चाहिए।
  5. शिक्षक को विद्यार्थियों को टी०एल०एम० समझाते हुए प्रत्येक बच्चे पर ध्यान रखना चाहिए।
  6. टी०एल०एम० में अत्यधिक समय व्यतीत नहीं करना के मुख्य उद्देश्यों को ध्यान में रखना चाहिए ताकि मूल उद्देश्यों से ना भटके।
  7. टी०एल०एम० का प्रयोग करते समय शिक्षण सूत्रों या शिक्षण युक्तियों का पालन किया जाना चाहिए।

शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रकार

शिक्षण अधिगम सामग्री को तीन भागों में विभक्त किया गया है। जो कि निम्नलिखित हैं---
  1. श्रव्य सामग्री
  2. दृश्य सामग्री
  3. दृश्य-श्रव्य सामग्री

श्रव्य सामग्री-

ऐसी सामग्री अथवा साधन जिनसे, ज्ञान अथवा अनुदेशन ध्वनि के माध्यम से मिलता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ऐसी सामग्री जिसमें हमारी केवल श्रवण इंद्री अर्थात कान ही सक्रिय रहता है श्रव्य सामग्री के उदाहरण कुछ इस प्रकार हैं।
जैसे- रेडियो, ग्रामोफोन, टेप-रिकॉर्डर।

दृश्य सामग्री-

ऐसी सामग्री अथवा साधन जिनको हम अपनी आंखों से प्रत्यक्ष रूप में देख सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसी सामग्री जिसमें केवल दृश्य इंद्री अर्थात हमारी आंख ही सक्रिय रहती है दृश्य सामग्री कहलाती है उदाहरण के लिए - श्यामपट्ट, चार्ट, मानचित्र अथवा चित्र, व खाके, मॉडल, फ्लैनल ग्राफ, सूचना पट्ठ, फिल्म पट्टिकाएँ, स्लाइड्स, रेखा-चित्र, ग्राफ, चित्र-विस्तारक यंत्र, जादू की लालटेन, ओवरहेड प्रोजेक्टर इत्यादि।

दृश्य-श्रव्य सामग्री-

ऐसी सामग्रियां जिसमें हमारी दो ज्ञानेंद्रियां 'कान एवं आँख' दोनों ही सक्रिय होते हैं अर्थात ऐसी सामग्रियां जिनको देखने के साथ-साथ सुना भी जा सकता हो श्रव्य-दृश्य सामग्री कहलाती हैं। ये सामग्रियां उपरोक्त दोनों सामग्रियों से अधिक कारगर और ज्ञान को अधिक स्थायित्व प्रदान करने में सहायक होती हैं।
जैसे- टेलीविजन कंप्यूटर चलचित्र ड्रामा इत्यादि।