“कृषि कानून 2020”
भारत में 2020 में तीन कृषि बिल पारित हुए जो अब कानून का रूप ले चुके हैं। इस लेख में इससे जुड़े कुछ सवाल हैं जो आपके दिलो-दिमाग में भी जरूर चलते रहते होंगें जैसे- कृषि कानून 2020 क्या है?, कृषि कानून का विरोध क्यों हो रहा है?, कृषि कानून के क्या दोष हैं?, कृषि कानून के क्या लाभ हैं?, एम०एस०पी क्या है? इत्यादि...
कोविड-19 के चलते पूरे देश में आपातकालीन स्थिति है और इस स्थिति को देखते हुए 5 जून 2020 को मौजूदा सरकार ने तीन अध्यादेश जारी किए हैं जो कृषि से जुड़े हुए हैं।
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण विधेयक 2020
कृषक सशक्तिकरण एवं संरक्षण कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक 2020
आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020
आज पूरे देश में इन तीन कानूनों को लेकर अशांति का माहौल पैदा हो चुका है इन बिलों को लेकर सभी किसान आंदोलन कर रहे हैं और इन बिलों का विरोध कर रहे हैं क्योंकि किसानों को लगता है कि यह बिल किसान हित में नहीं है और इनसे किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान भुगतना पड़ सकता है जिसका खामियाजा केवल किसानों को ही नहीं पूरे देशवासियों को भुगतना पड़ सकता है। बीते दिनों दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में देखा गया कि किसानों द्वारा इन तीनों कानूनों के खिलाफ किस प्रकार रेलिया निकाली गई और इनका विरोध किया गया। किंतु सरकार इन कानूनों को वापस लेने के लिए राजी नहीं है क्योंकि सरकार का मानना है कि यह तीनों बिल किसान हित को लेकर ही बनाए गए हैं जरूरत है इन बिलों को समझने की। अब हम इन तीनों कानूनों को समझने की कोशिश करते हैं कि इन कानून में ऐसा क्या है जिसके कारण इनका विरोध किया जा रहा है।
1) कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण विधेयक 2020 :
जैसा कि इस बिल के नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह किसानों की उपज और उनकी फसल के लेनदेन को आसान करने के लिए बनाया गया है इसमें जो मुख्य बातें कहीं नहीं हैं वह इस प्रकार हैं किसानों को एपीएमसी मंडियों के अलावा भी अपनी उपज बेचने अवसर को बढ़ावा देना।
गुण एवं विशेषता:
किसान अपनी उपज केवल सरकारी गोदामों में ही नहीं दे सकते बल्कि उनको पूरी छूट दी जाएगी कि वह अपनी फसल को किसी प्राइवेट मंडियों में भी बेच सकते हैं।
दूसरी बात जोकि किसानों पर यह लागू होती थी कि वह अपनी उपज को केवल अपने ही राज्य में भेज सकते थे किंतु इस बिल के बाद सरकार के द्वारा यह सुधार किया गया कि किसान पूरे भारत में अपनी फसल को कहीं भी उचित मूल्य पर बेच सकता है उस पर किसी भी प्रकार की बाध्यता नहीं होगी
किसानों को ऑनलाइन संवर्धन से जोड़ना इसके अनुसार किसानों को ऑनलाइन मार्केटिंग से जोड़ा जाएगा ताकि किसान अपनी फसलों को ऑनलाइन भी बेच सकें और बीच में कोई बिचौलिया ना हो और वह डायरेक्ट खरीदार से सौदा कर सके।
किसानों से कोई भी राज्य कर नहीं वसूला जाएगा इस बिंदु में सरकार द्वारा यह कहा गया कि किसानों को अपनी फसल बेचने में कोई भी राज्य कर नहीं देना पड़ेगा और साथ ही साथ किसी भी प्रकार की फीस अथवा इससे संबंधित कोई भी अन्य कर नहीं देना पड़ेगा और यदि किसी दशा में राज्य का कोई ऐसा कानून है जिसमें कर लागू होता है तो वह कर किसानों पर लागू नहीं किया जाएगा इस दशा में वह कानून शून्य हो जाएगा।
विवाद निपटान तंत्र- इस तथ्य में सरकार द्वारा यह कहा गया कि यदि कोई ऐसी दशा उत्पन्न हो जाती है की किसान और किसी व्यापारी में फसल की कीमत को लेकर अथवा उसकी गुणवत्ता को लेकर कोई विवाद हो जाता है तो इस दशा में जिलाधिकारी द्वारा 30 दिनों के भीतर इसका निपटारा किया जाएगा और किसी भी दशा में यह मामला सिविल कोर्ट में नहीं जाएगा इसका पूर्ण निपटान केबल जिलाधिकारी एवं कलेक्टर द्वारा ही किया जाएगा।
2.कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 The Farmer (Empowerment and protection) Agreement on Price assurance and farm services Act,2020
- किसान एग्रीमेंट कर सकेंगे। इसमें दो मुख्य व्यक्ति शामिल होंगे प्रथम किसान द्वितीय स्पॉन्सर (जिससे किसान अग्रीमेंट करेगा)। इस एग्रीमेंट में मुख्य बातें यह होंगी कि स्पांसर किस चीज की खेती किसान से करवाना चाहता है और उसके लिए वह क्या सुविधाएं किसान को उपलब्ध कराएगा।
- समय का चयन कर सकेंगे। किसी भी एग्रीमेंट को करने के लिए किसान और स्पॉन्सर के बीच आपसी सहमति से एक फसल सीजन से लेकर 5 साल तक का एग्रीमेंट किया जा सकता है।
- किसानों को मॉडल कॉन्ट्रैक्ट मुहैया कराया जा सकता है।
- उचित मूल्य लगाने की प्रक्रिया प्रदान की जाएगी। इसमें किसान और कांट्रेक्टर के बीच पहले से ही फसल का मूल्य तय किया जाएगा और साथ ही साथ यदि फसल का दाम आने वाले समय में बढ़ता है तो वह उस धाम के मुताबिक बढ़ाया जा सकता है।
- वितरण और भुगतान संबंधित प्रकिया : इसमें किसान जिस दिन फसल को वितरित करेगा उसी दिन उसे उस फसल का भुगतान किया जाएगा। किसी विशेष समस्या पर अधिकतम 3 दिन के भीतर ही किसान को भुगतान किया जाए।
- किसान की ज़मीन संबंधी : इस प्रावधान में यह कहा गया है कि किसान की जमीन को इस एग्रीमेंट का हिस्सा नहीं माना जाएगा ताकि किसान इस बात से सुरक्षित महसूस करें कि कोई भी उनकी जमीन पर अपना अधिकार स्थापित नहीं कर सकता है और इस प्रकार की कोई भी बात एग्रीमेंट में नहीं की जाएगी। दूसरी बात यह है कि यदि स्पॉन्सर किसान की जमीन पर किसान की सहमति से कोई स्थाई स्ट्रक्चर बनाता है तो वह एग्रीमेंट खत्म होने के बाद अपने खर्चे पर उसे हटवाए गा और यदि ऐसा नहीं करता है तो एग्रीमेंट खत्म होने के बाद यह है स्ट्रक्चर किसान की संपत्ति मानी जाएगी।
- रजिस्ट्रेशन संबंधी : प्रत्येक राज्य की राज्य सरकार इस बात को सुनिश्चित करेगी की किसान और स्पॉन्सर के बीच होने वाले एग्रीमेंट को संवैधानिक तरीके से रजिस्टर करेगी।
- अप्रत्याशित घटनाओं संबंधी : यदि किसी अप्रत्याशित घटना के चलते किसान और स्पॉन्सर में से कोई भी यदि कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को पूरा नहीं कर पाता है तो इस स्थिति में किसान अथवा स्पॉन्सर पर कोई भी जुर्माना अथवा कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। और यदि किसान किसी कारण कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को पूरा नहीं कर पाया तो उसको नुकसान ना हो इसकी व्यवस्था भी इस कांटेक्ट में की जाएगी।
- विवाद स्थिति के निपटान संबंधी: एक समझौता बोर्ड तैयार किया जाएगा। और यदि किसी स्थिति में समझौता नहीं होता है तो यह मामला जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सुलझाया जा सकेगा और यदि किसी भी स्थिति में किसान अथवा स्पॉन्सर जिला मजिस्ट्रेट से भी सहमत नहीं होते हैं तो वह इस स्थिति में कलेक्टर के पास अपनी गुहार लगा सकते हैं।
- दंड संबंधी : इसमें यदि कोई भी पक्ष एग्रीमेंट को तोड़ता है तो उस पर दंड का प्रावधान लागू किया जाएगा जिसके अंतर्गत यदि स्पॉन्सर किसी अवैध तरीके से एग्रीमेंट को भंग करता है तो उस पर एग्रीमेंट में तय की गई राशि से डेढ़ गुना राशि किसान को देनी होगी। और यदि यह है किसान के द्वारा किया गया तो किसान को केवल स्पॉन्सर द्वारा है खर्च की गई राशि ही भुगतान करनी होगी।
- किसान एडवांस लेकर खेती कर सकता है।
- इससे किसानों में प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी।
- इससे खेती में नवाचार का युग आएगा।
- इस अधिनियम से जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा।
- फसलों में विविधता आएगी जैसे अभी मात्र केवल खाद्यान्न फसलों पर ही ध्यान दिया जाता है इसके बाद अन्य फसलों को भी बढ़ावा मिलेगा।
- सहकारी खेती को बढ़ावा मिलेगा।
- कोर्ट : किस अधिनियम में विवाद की स्थिति में कोर्ट को सम्मिलित नहीं किया गया जो की आंशिक रूप से चिंता का विषय है।
- बाजार भाव संबंधी: किसी फसल के दौरान बाजार में उस फसल का भाव बढ़ जाता है तो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में उसके लिए पहले से ही मोल भाव तय किया गया है किंतु इसका उपाय यह है कि किसान अपने कांट्रैक्टर से फसल के पूर्व ही एमएसपी की बातें रखें।
- कानूनी एवं सहकारी दांवपेंच: इसमें किसानों को यह डर है कि यदि बड़ी-बड़ी कंपनियों के कांट्रेक्टर कॉन्ट्रैक्ट में कुछ ऐसे फिर फिर कर दें जो किसान के लिए दुविधा पैदा करें तो यह चिंता का विषय होगा।
- पैन कार्ड संबंधी: इसमें कोई भी पैन कार्ड धारक व्यक्ति कांटेक्ट कर सकता है इसके लिए कोई भी अन्य नियम नहीं रखे गए हैं जो की चिंता का विषय है।
- एमएसपी संबंधी: इसे मिनिमम सपोर्ट प्राइस कहते हैं इसमें सरकार किसानों को फसल पर न्यूनतम क्रय मूल्य तय करती है जिस पर की फसल खरीदी जा सकती है चाहे बाजार में फसल का भाव कम ही क्यों ना हो किंतु एमएसपी के तहत उन्हें मिनिमम मूल्य दिया जाएगा। किंतु किसानों को यह चिंता है कि इस अधिनियम के लागू होने पर ऐसा नहीं होगा।
3. आवश्यक वस्तुएँ (संशोधन) अधिनियम 2020 (Essential Commodities (Amendment) Act 2020)
- इसमें कोई भी व्यक्ति एवं संस्था वस्तुओं का या फिर खाद्य वस्तुओं का भंडारण आवश्यकतानुसार कर सकेगा।
- विपरीत परिस्थितियों में ही किसी व्यक्ति एवं संस्था को खाद्यान्न सामग्री का भंडारण करने पर नियमों के तहत ही भंडारण करने की अनुमति दी जाएगी। अथवा रोका भी जा सकता है।
- यदि असाधारण तरीके से खाद्य सामग्रियों का भाव बढ़ जाता है तो इस स्थिति में भी भंडारण करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- विपरीत परिस्थितियों में भी किसी संस्था एवं व्यक्ति की कंपनी के भंडारण की क्षमता के अनुसार उसको भंडारण न करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
- दोस्तों का बाजारीकरण किया जा सकता है।
- किसानों एवं बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी जिससे किसानों को फायदा होगा।
- किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य प्रदान किया जाएगा।
- कृषि का वैश्वीकरण होगा।
- कृत्रिम मांग उत्तपन्न हो सकती हैं।
- भंडारण कर फसल का दाम बढ़ाया जा सकता है।
- सरकार को लिखित में एमएसपी जारी संदेश देशवासियों को देना चाहिए ताकि किसान निश्चिंत रहें और आक्रोशित ना हों।
- एपीएमसी मंडियों को प्राइवेट मंडियां जो भारत में मनाए जाएंगे उनके बराबर का दर्जा दिया जाना चाहिए।
- सहकारी कंपनियों के लिए भी इसमें एक नियमावली होनी चाहिए ताकि वह किसानों के साथ छल ना कर सके।
- किसानों में विश्वास जागृत करने के लिए न्यायालय को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए ताकि किसान निश्चित रहे कि उनको विवाद की स्थिति में पूर्ण न्याय मिलेगा।
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