वाच्य किसे कहते हैं? Vachya kise kehte hain?

वाच्य किसे कहते हैं?

वाच्य किसे कहते हैं | vachya kise kehte hain

वाच्य की परिभाषा :

वाक्य में प्रयोग होने वाली क्रिया का ऐसा रूप जिससे वाक्य में कर्ता प्रधान हो या कर्म प्रधान हो या फिर भाव प्रधान हो, वाच्य कहलाता है।
उदाहरण के लिए:

  • मीना खाना बनाती है। (इस वाक्य में कर्ता मीना है जो कि मुख्य विषय है।)
  • मीना के द्वारा खाना बनाया जाता है। (इस वाक्य में कर्म खाना है जो कि मुख्य विषय है।)
  • मीना से उठा नहीं जाता है। (इस वाक्य में केवल भाव प्रधान है जो कि मुख्य विषय है।)

उपरोक्त उदाहरणों में क्रिया कर्ता, कर्म और भाव के अनुसार परिवर्तित हो रही है जिसके आधार पर वाच्य के तीन भेद होते हैं-

वाच्य के प्रकार:

  1. कर्तृवाच्य (active voice)
  2. कर्मवाच्य (passive voice)
  3. भाववाच्य
  1. कर्तृवाच्य:

    वाक्य में प्रयोग होने वाला, क्रिया का ऐसा रूप जिसमें वाक्य का मुख्य विषय कर्ता होता है उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। कर्तृवाच्य में क्रिया सकर्मक भी होती हैं और अकर्मक भी होती हैं। क्योंकि इसमें हमेशा कर्ता प्रधान होगा। ऐसे वाक्य जिसमें क्रिया का लिंग और वचन, कर्ता के अनुसार होता है।
    जैसे:श्याम खेल खेलता है।

    कर्तृवाच्य, वाक्य की पहचान:

    इस प्रकार के वाक्यों में से द्वारा के द्वारा इत्यादि शब्द नहीं आते हैं तो वह कर्तृवाच्य,वाक्य ही होंगे।

  2. कर्मवाच्य:

    वाक्य में प्रयोग होने वाला, क्रिया का ऐसा रूप जिसमें वाक्य का मुख्य विषय कर्ता न होकर कर्म होता है उसे कर्मवाच्य कहते हैं। ऐसे वाक्य जिसमें क्रिया का लिंग और वचन, कर्म के अनुसार होता है।
    जैसे:गीता द्वारा अखबार पढ़ा गया।

    कर्मवाच्य, वाक्य की पहचान

    इस प्रकार के वाक्यों में- से, द्वारा, के द्वारा इत्यादि शब्द आते हैं तथा क्रिया केवल सकर्मक ही होगी। तो वह कर्मवाच्य,वाक्य ही होंगे।

    सकर्मक क्रिया की पहचान:

    जिस वाक्य में क्या, किसे एवं किसको का जवाब आता है वहां सकर्मक क्रिया होगी। अन्यथा अकर्मक। (सकर्मक क्रिया का उत्तर हमेशा निर्जीव संज्ञा ही होगा)

  3. भाववाच्य:

    वाक्य में प्रयोग होने वाला, क्रिया का ऐसा रूप जिसमें वाक्य का मुख्य विषय, न तो कर्ता होता है और न ही कर्म होता है वाक्य में केवल भाव प्रधान होता है। उसे भाववाच्य कहते हैं। ऐसे वाक्य जिसमें क्रिया न तो कर्ता के अनुसार होती है और न ही कर्म के अनुसार होती है। वाक्य में केवल क्रिया के भाव की प्रधानता होती है।
    जैसे:मोहन से बैठा नहीं जाता।

    भाववाच्य, वाक्य की पहचान:

    इस प्रकार के वाक्यों में कर्मवाच्य की तरह- से, द्वारा, के द्वारा इत्यादि शब्द आते हैं किंतु क्रिया अकर्मक होती है और भाव प्रधान होता है और क्रिया का रूप, भाव के अनुरूप परिवर्तित होता है तथा क्रिया सदैव अन्य पुरुष, एकवचन और पुल्लिंग ही होगी। तो वह भाववाच्य,वाक्य ही होंगे।

वाच्य परिवर्तन के नियम:

वाच्य परिवर्तन के निम्नलिखित हैं जो कि नियम इस प्रकार हैं।

  • कर्ता की पहचान करनी है।

  • यदि कर्ता के साथ- से, द्वारा या के द्वारा होता है तो उसे हटा दिया जाता है। यदि कर्ता के साथ- से, द्वारा या के द्वारा नहीं होता है तो लगा दिया जाता है।

  • कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में बदलने के लिए क्रिया की धातु में या/ ता प्रत्यय जोड़ा जाता है। 'जा ' धातु का प्रयोग कर्म के लिंग वचन पुरुष एवं काल के अनुरूप किया जाता है। कर्म के साथ यदि कोई परसर्ग (परसर्ग- में, का, की, के, को, के लिए, से, ने, पर इत्यादि) लगा होता है तो उसे हटा दिया जाता है।

  • कर्तृवाच्य से भाव वाच्य में बदलने के लिए क्रिया सदैव पुल्लिंग अन्य पुरुष एकवचन में रहेगी और जा धातु की क्रिया का प्रयोग क्रिया के काल के अनुसार किया जाता है।

वाच्य परिवर्तन:

कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तन

कर्तृवाच्य कर्मवाच्य
श्याम खेल खेलता है। श्याम से खेल खेला जाता है।
रामू खेती करता है। राम के द्वारा खेती की जाती है।
रमेश खाना खाता है। रमेश के द्वारा खाना खाया जाता है।
रमेश खाना खा रहा है। रमेश के द्वारा खाना खाया जा रहा है।
मोहन पुस्तक पढ़ता है। मोहन से पुस्तक पढ़ी जाती है।
मोहन पुस्तक पढ़ रहा है। मोहन के द्वारा पुस्तक पढ़ी जा रही है।
गीता गाना गा रही है। गीता के द्वारा गाना गाया जा रहा है।
गीता गाना गाती है। गीता के द्वारा गाना गाया जाता है।