अविकारी शब्द किसे कहते हैं? उनके प्रकार
प्रिय पाठकों आज हम अविकारी शब्दों के बारे में विस्तार से अध्य्यन करेंगे। अविकारी शब्दों के बारे में हम शब्द विचार में पढ़ चुके हैं। किंतु आज हम अविकारी शब्दों के भेदों का भी विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगें।
अविकारी शब्द की परिभाषा :
ऐसे शब्द जिनमें लिंग, वचन, कारक अथवा काल आदि के कारण शब्दों के रूप में कोई बदलाब नहीं आता है, तो वे शब्द अविकारी शब्द कहलाते हैं।
अविकारी शब्द कितने प्रकार के होते हैं?
अविकारी शब्द चार प्रकार के होते हैं।
- क्रिया विशेषण
- समुच्चयबोधक
- संबंधबोधक
- विस्मयादिबोधक
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क्रिया विशेषण
ऐसे शब्द जो किसी क्रिया शब्द की विशेषता बताते हैं, उन्हें क्रिया-विशेषण कहते हैं।
उदाहरण - राम तेज दौड़ता है। (इस वाक्य में दौड़ता क्रिया है लेकिन इस क्रिया की विशेषता जो शब्द बता रहा है वह शब्द तेज है। इसलिए तेज शब्द क्रिया विशेषण है।) किसी भी क्रिया की विशेषता चार प्रकार से बताई जा सकती है जिसके आधार पर हम क्रिया विशेषण को चार भागों में विभाजित कर सकते हैं|
अर्थात
क्रिया की विशेषता के आधार पर क्रिया विशेषण चार प्रकार के होते हैं।-
रीतिवाचक क्रियाविशेषण:
ऐसे क्रियाविशेषण शब्द जिनसे कार्य की रीति या विधि या ढंग का पता चलता है उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।
लेकिन कार्य अथवा क्रिया की विधि या रीति या ढंग भिन्न- भिन्न प्रकार की हो सकती है।
जैसे: विधि की गति, रीति या विधि का कारण, रीति या विधि में निश्चितता अथवा रीति या विधि में अनिश्चितता।
रीति या विधि की गति - तेज, आराम, जल्दी, धीरे - धीरे, ध्यानपूर्वक, एकाएक इत्यादि।
रीति या विधि का कारण - इसलिए, अतएव, अतः, नतीजतन, लिहाज़ा आदि।
रीति या विधि में निश्चितता - सचमुच, यकीनन, निस्संदेश अवश्य आदि।
रीति या विधि में अनिश्चितता - शायद, प्रायः, संभवतः बहुधा इत्यादि।
वाक्य वाक्य :- खरगोश तेज दौड़ता है।
- कछुआ धीरे धीरे चलता है।
- चाचा अचानक आ गए।
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स्थानवाचक क्रियाविशेषण
ऐसे क्रियाविशेषण शब्द जिनसे क्रिया के होने के स्थान का पता चलता है उन्हें स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।
जैसे: आस- पास, अंदर, बाहर, भीतर, ऊपर, नीचे, दाएँ, बाएँ, यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, इधर, उधर, किधर, आमने- सामने, चारो तरफ, इत्यादि शब्द स्थानवाचक क्रियाविशेषण शब्द हैं।
वाक्य प्रयोग:
- आप बाहर जाइए।
- तुम कहां जा रहे हो।
- चारों तरफ काली घटा छाई है।
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कलवाचक क्रिया विशेषण
ऐसे क्रियाविशेषण शब्द जिनसे क्रिया के होने के काल का (समय का) पता चलता है उन्हें कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।
जैसे: आज, फिर, कब, कल, परसों, पहले, बाद में, जब, तब, सदा, लगातार , दिनभर, अभी, तुरंत, हमेशा इत्यादि शब्द कालवाचाक क्रिया विशेषण शब्द हैं।
वाक्य प्रयोग:
- हम प्रतिदिन पूजा करते हैं।
- वह लगातार काम करते रहता है।
- हम कल ही आए हैं।
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परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
ऐसे क्रियाविशेषण शब्द जिनसे क्रिया के करने या होने के परिमाण या मात्रा का पता चलता है उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
इनको पहचानने के लिए क्रिया के साथ कितना/कितने/कितनी शब्द लगाकर प्रश्न पूछने पर जो उत्तर मिलता है वह परिमाणवाचक क्रियाविशेषण शब्द होते हैं।
जैसे:बहुत, खूब, कुछ, जरा, थोड़ा, काफी, ज्यादा, कम, पर्याप्त, तनिक, कितना, जितना, अल्प इत्यादि
प्रयोग वाक्य:
- वह खाना ज्यादा खाता है।
- नेता जी बहुत ज्यादा बोलते हैं।
- आज मैंने थोड़ा काम किया।
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समुच्चयबोधक
ऐसे शब्द जो दो शब्दों को अथवा दो वाक्यों को जोड़ता हो समुच्चयबोधक अथवा योजक कहलाता है।
जैसे: लेकिन, किंतु, परंतु, या, अथवा, इत्यादि, अन्यथा, और, तथा, एवं, पर, अतः, इसलिए, क्योंकि, तथापि.. यद्यपि, ताकि इत्यादि शब्द समुच्चयबोधक या योजक शब्द कहलाते हैं।
समुच्चयबोधक शब्द दो प्रकार के होते हैं:-
समानाधिकरण समुच्चयबोधक शब्द:
ऐसे शब्द जो दो या दो से अधिक सामन पदों या वाक्यों को जोड़ने का काम करते हैं समानाधिकरण समुच्चयबोधक शब्द कहलाते हैं।
जैसे:या, अन्यथा, एवं, किंतु, परंतु, अतः, बल्कि, परंतु, और, अथवा, तथा, अगर, मगर, वरना इत्यादि -
व्यधिकरण योजक/समुच्चयबोधक शब्द:
ऐसे शब्द जो एक या एक से अधिक आश्रित वाक्यों को मुख्य वाक्यों से जोड़ते हैं। व्यधिकरण समुच्चयबोधक शब्द कहलाते हैं।
जैसे:ताकि, क्योंकि, यदि -तो, कि, तो, इसलिए, मानो, यद्यपि तथापि इत्यादि।
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संबंधबोधक
ऐसे शब्द जो किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का सम्बंध वाक्य के अन्य शब्दों से जोड़ते हैं सम्बंध बोधक शब्द कहलाते हैं। संबंधबोधक शब्द के, की, से आदि के साथ ही प्रयोग किया होते हैं। यदि इनका प्रयोग न करें तो शब्द क्रियाविशेषण शब्द बन जायेगा।
जैसे:- राम तुम मोहन के साथ चलो। (के साथ -संबंध बोधक)
- तुम मेरे साथ चलो ( साथ -क्रियाविशेषण)
संबंधबोधक के निम्नलिखित रूप हैं:
स्थानवाचक - के नीचे, के ऊपर, के भीतर, के आगे, के पास आदि ।
कालवाचक: के बाद, से पहले, से पूर्व, के पश्चात आदि ।
दिशावाचक के सामने, के समीप, की ओर, की तरफ़ आदि ।
साधनवाचक: के सहारे, के द्वारा, के जरिए आदि ।
समतावाचक : की तरह, के समान, के अनुसार आदि ।
संगवाचक - के संग, के साथ आदि।
हेतुवाचक - के लिए, के कारण, की खातिर, के अलावा आदि।
विरोधवाचक- के विरुद्ध, के खिलाफ, के विपरीत आदि। -
विस्मयादिबोधक
ऐसे शब्द जो मन के भावों जैसे - हर्ष, शोक, हेय, घृणा, भय, पीड़ा, खुशी, प्रशंसा आदि को प्रकट करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं विस्मयादिबोधक शब्द कहलाते हैं।
विस्मयादिबोधक शब्दों के उदाहरण निम्नलिखित हैं:
हर्ष उल्लाससूचक - अहा, वाह!
शोक / पीड़ा / ग्लानिसूचक - हाय, उफ़, ओह!
संवेदनासूचक - राम-राम, हाय, तौबा तौबा !
विस्मय/आश्चर्यसूचक - अरे, हैं, ओहो, क्या!
चेतावनीसूचक - सावधान, होशियार, हटो!
संबोधनसूचक - हे, अरे!
प्रशंसासूचक - शाबाश!
तिरस्कार/ घृणासूचक - छि:, धिक, धत्!
जैसे:- अरे! आप कब आए।
- शाबाश! तुमने बहुत अच्छा काम किया है।
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निपात अविकारी शब्द किसे कहते हैं:
ऐसे शब्द जो किसी वाक्य में विभिन्न पदों के बाद लगकर वाक्य के अर्थ को विशेष
बल प्रदान करते हैं या उस वाक्य के भाव में विशिष्ट भार लाते हैं ऐसे शब्द
निपात अविकारी कहलाते हैं।
जैसे:मात्र, तक, भर, भी, तो, ही आदि।
उदाहरण वाक्य: राम आगरा जायेगा ( सामान्य वाक्य)
निपात शब्द के बाद;
- राम ही आगरा जायेगा।
- राम भी आगरा जायेगा।
- राम आगरा ही जायेगा।
- मात्र राम आगरा जायेगा।
इस प्रकार सामान्य वाक्य को निपात शब्द अधिक बल प्रदान करते हैं।
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