श्रवण बाधिता (hearing impairment) श्रवण बाधिता क्या है?

श्रवण बाधिता क्या है?

जब किसी छात्र को सुनने में आंशिक रूप से अथवा पूर्ण रूप से परेशानी का सामना करना पड़ता है तो वहां श्रवण बाधित बालक कहलाता है। यह जन्मजात कारणों से भी हो सकते हैं और अन्य कारणों से भी हो सकता है जैसे किसी के कानों में चोट लगना या कानों में उच्च ध्वनि के कारण क्षति पहुंचना इत्यादि। श्रवण बाधिता के कारण छात्र अच्छे से सुन नहीं पाता जिसके कारण वह चीजों को सीख नहीं पाता है। इससे छात्रों में शिक्षा और सामाजिक एवं भावनात्मक विकास में दिक्कतें आ सकती हैं।


श्रवण बाधिता के प्रकार

श्रवण बाधिता के मुख्यतः चार प्रकार होते हैं:
  1. प्रवाहकीय श्रवण हानि:

    इसमें ध्वनि तरंगों को मस्तिष्क तक पहुंचने में दिक्कत होती है। यह बाहरी कान अथवा मध्य कान में दिक्कत अथवा इंफेक्शन के कारण होता है।

  2. सेंसोन्यूरल श्रवण हानि:

    यह आंतरिक कान या श्रवण तंत्रिका के घाव या बीमारी के कारण होता है।

  3. मिश्रित श्रवण हानि:

    यह प्रवाहकीय श्रवण हानि एवं सेंसोन्यूरल श्रवण हानि दोनों का मिश्रित रूप है।

  4. श्रवण न्यूरोपैथी स्पेक्ट्रम विकार:

    यह श्रवण हानि तब होती है जब ध्वनि सामान्य रूप से कान में प्रवेश करती है लेकिन आंतरिक कान की क्षति होने के कारण ध्वनि उस तरीके से व्यवस्थित नहीं हो पाती है जिसे मस्तिष्क समझ पाए।

श्रवण बाधिता बालकों का वर्गीकरण

  1. कम श्रवण बाधित बालक:

    जैसा कि किस वर्गीकरण के नाम से ही स्पष्ट है कि वह बालक जो पास की आवाज तो अच्छे से सुन सकते हैं किंतु दूर की आवाज सुनने में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है किंतु यदि श्रवण सहायक सामग्री का उपयोग किया जाए तो यह दिक्कतों को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। इन बालकों की सुनने की क्षमता 25 डेसीबल से लेकर 45 डेसीबल तक होती है

  2. मंद श्रवण बाधित बालक:

    मंद श्रवण बाधित बालक शांत वातावरण में तो सुन सकते हैं किंतु सामान्य वातावरण में इन्हें सुनने में दिक्कत आती है यदि श्रवण सहायक सामग्रियों का उपयोग किया जाए तो सुनने में काफी सहायता प्रदान करती हैं। इन बालकों की सुनने की क्षमता 45 डेसीबल से लेकर 55 डेसीबल तक होती है।

  3. गंभीर रूप से श्रवण बाधित बालक:

    ऐसे बालक को को सुनने में काफी ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है यह है तेज आवाज तो सुन सकते हैं किंतु सामान्य बातें नहीं सुन पाते हैं और यदि यह श्रवण सहायक सामग्रियों का उपयोग करें तो कुछ हद तक ही यह इनके लिए मददगार साबित होती है। इन बालकों की सुनने की क्षमता 70 डेसीबल से लेकर 90 डेसीबल तक मानी गई है।

  4. पूर्ण रूप से श्रवण बाधित बालक:

    ऐसे बाला को को सुनने में बहुत ज्यादा दिक्कत होती है यह केवल वाइब्रेशन को ही महसूस कर सकते हैं किंतु ध्वनि को समझ पाने में बहुत ज्यादा दिक्कत होती है इन बालों को की सुनने की क्षमता 90 डेसीबल से लेकर 100 डेसीबल तक होती है।

श्रवण बाधिता के कारण :

श्रवण बाधिता के कारण बालको में श्रवण बाधिता के भिन्न-भिन्न कारण हो सकते हैं जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं।

  1. जन्मजात:- जन्म के समय होने वाली जटिलताओं के कारण भील बच्चों में आ सकता है।

  2. दुर्घटनाओं से :- कई बार ऐसी घटनाएं घट जाती हैं जिनके कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है अथवा खत्म हो सकती है।

  3. उच्च तीव्रता की ध्वनि से :- अत्याधिक तेज ध्वनियों से सुनने की क्षमता कम हो जाती है उच्च आवृत्ति की ध्वनियों से कान का पर्दा फट फट सकता है जिससे कानों में बहरापन हो सकता है।

  4. कानों में इंफेक्शन से:- वातावरण अथवा कानों में दवाइयों के प्रयोग से कानों में इंफेक्शन हो जाता है जिसके कारण सुनने की क्षमता कम अथवा खत्म हो सकती है।

  5. बढ़ती उम्र से:- उम्र के बढ़ने के साथ-साथ धीरे धीरे सुनने की क्षमता में कमी आने लगती है।

श्रवण बाधित बालकों के लक्षण:

  • श्रवण बाधित बालक समान ध्वनि वाले अक्षरों सुन पाने में दिक्कत का सामना करते हैं।
  • श्रवण बाधित बालक सही से नाखून पाने के कारण बातों को दोहराने के लिए भी कहते हैं।
  • श्रवण बाधित बालक किसी बात को सुनने के लिए सर को एक तरफ झुका कर सुनने का प्रयास करते हैं।
  • श्रवण बाधित बालक सवालों के पूछे जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं।
  • श्रवण बाधित बालक तेज आवाज में बोलते हैं।
  • बालको को बातों को समझने में दिक्कत होती है।
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श्रवण बाधित छात्रों के लिए शिक्षण विधियां/ तकनीक:

श्रवण बाधित बालक सुनने में आंशिक अथवा पूर्ण रूप से बाधित होते हैं जिसके कारण वह सुनने में असमर्थ अथवा कम सुनते हैं इसलिए इन वालों को शिक्षा प्रदान करने के लिए सामान्य बालकों की अपेक्षा विशिष्ट शिक्षण विधियों अथवा तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं।

  1. सांकेतिक भाषा :

    श्रवण बाधित बालक को से संवाद हेतु सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया जाता है। जिसमें सामान्य बालक को के शब्दों को कुछ विशेष संकेतों में व्यक्त किया जाता है और श्रवण बाधित बालकों को यह समझाया जाता है कि यह संकेत किस बात के लिए उपयोग करना है। सांकेतिक भाषा श्रवण बाधित बालकों के लिए प्रमाणिक तौर पर बहुत ही लाभकारी है इसलिए विद्यालयों में भी शिक्षकों को सांकेतिक भाषा से परिचय कराया जाता है सांकेतिक भाषा का उपयोग दूरदर्शन समाचार पर भी किया जाता है ताकि श्रवण बाधित बालक भी समाचारों को समझ सके।

  2. ओष्ठ पठन (होंठों को पढ़ना):

    श्रवण बाधित बालक को होठों को पढ़ना भी सिखाया जाता है। जब किसी को सांकेतिक भाषा में बात करनी ना आए तो श्रवण बाधित व्यक्ति होठों को पढ़कर समझ सकता है कि वह क्या कहना चाह रहा है। यह विधि बहुत ज्यादा कारगर तो नहीं है किंतु इस विधि का उपयोग वैकल्पिक रूप में किया जा सकता है।

  3. गतिविधियों का उपयोग:

    इस तकनीक में श्रवण बाधित बालकों के समक्ष व्यक्ति कुछ ऐसी गतिविधियां करता है ताकि श्रवण बाधित बालक उन गतिविधियों को आसानी से समझ कर उनका भावार्थ समझ जाए।

  4. श्रवण ध्वनि यंत्र:

    श्रवण ध्वनि यंत्रों का प्रयोग उन बालकों के लिए किया जाता है जो सुनने में आंशिक रूप से बाधित|

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